
समाज का आईना कहे जाने वाले पत्रकार आज स्वयं आईने के सामने खड़े होकर झिझकते दिख रहे हैं। यह कटु सत्य है कि जिस व्यक्ति के भीतर हीन भावना होती है, वहाँ मायूसी और उदासी का वास होता है। यह भाव केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि पत्रकार समाज पर भी लागू होता है।
कुशीनगर के वरिष्ठ पत्रकार और सच्ची रिपोर्ट के संपादक के.एन. साहनी का कहना है कि पत्रकार बुद्धिजीवी वर्ग का हिस्सा है। उसमें अनुभव भी है, साहस भी और कलम की ताकत भी। फिर भी पत्रकार समाज अपने असली सामर्थ्य को सामने नहीं ला पा रहा। कारण साफ है – अहंकार और असंगठितता।
उत्तर प्रदेश में लाखों पत्रकार हैं। कुछ सक्रिय हैं, कुछ मजबूरीवश कलम छोड़कर घर बैठ गए हैं, तो कुछ अपने स्तर पर ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद पत्रकार आज भी बिखरे क्यों हैं? क्या यह विडंबना नहीं कि जो समाज दूसरों को सच का आईना दिखाता है, वही खुद अपने भीतर की सच्चाई से मुंह मोड़े बैठा है?
साहनी जी का कहना बिल्कुल सही है कि पत्रकार समाज में घमंड और मतभेद सबसे बड़ी बाधा हैं। यही कारण है कि पत्रकार अकेलेपन में रह जाते हैं और सामूहिक ताकत नहीं बना पाते। नतीजा यह होता है कि सत्ता और व्यवस्था पत्रकारिता की आवाज को हल्के में लेने लगती है।
यह स्थिति पत्रकारिता के लिए खतरनाक है। पत्रकार का कर्तव्य है जनहित की रक्षा करना, सत्ता को आईना दिखाना और वंचितों की आवाज उठाना। लेकिन जब स्वयं पत्रकार संगठित नहीं होंगे, तो उनकी आवाज़ कितनी भी बुलंद क्यों न हो, वह बिखर कर रह जाएगी।
आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि पत्रकार समाज कब अपने छोटे-बड़े भेदभाव को छोड़कर एक मंच पर आएगा? जिस दिन यह एकता दिखाई देगी, उस दिन सत्ता भी मजबूर होकर पत्रकारिता की ताकत को मानने पर विवश होगी।
इसलिए यह समय आत्ममंथन का है। पत्रकारों को यह समझना होगा कि कलम की असली ताकत अकेलेपन में नहीं, बल्कि एकता में छिपी है। अगर पत्रकार एक हो जाएं तो किसी भी अन्याय, शोषण या भ्रष्टाचार की जड़ें हिला सकते हैं। लेकिन बिखरे रहकर वे केवल अपने ही अस्तित्व को कमजोर कर रहे हैं।
यही संदेश है – पत्रकार समाज को अपने भीतर झांकना होगा, अहंकार छोड़ना होगा और एकजुट होना होगा। तभी पत्रकारिता अपनी असली ताकत दिखा पाएगी।