
थाना गौरीबाजार, तहसील रुद्रपुर, जनपद देवरिया

रिपोर्ट: के. एन. साहनी
आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी जनपद देवरिया में एक ऐसा गाँव है जो विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है। कर्मेल, थाना गौरीबाजार और तहसील रुद्रपुर के अंतर्गत स्थित वह गाँव है, जिसे स्थानीय लोग “लेखपाल का टोला” कहते हैं। यह गाँव पूर्णतः निषाद समुदाय का निवास क्षेत्र है।
गाँव की सबसे बड़ी समस्या है – सड़क का अभाव। मुख्य पिच मार्ग से मात्र 450 मीटर दूरी पर बसे इस गाँव तक आज तक कोई पक्की या कच्ची सड़क नहीं बनी। हैरानी की बात यह है कि गांव का नाम नक्शे में दर्ज है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वहां कोई सीधी या सुलभ पहुंच मार्ग नहीं है। स्थानीय कास्तकारों और ग्रामीणों का कहना है कि –
“जब तक जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी स्तर पर कोई विस्तृत हस्तक्षेप नहीं होगा, तब तक इस गाँव को सड़क नसीब नहीं होगी।”
एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती, बीमारों को उठाकर ले जाना मजबूरी
सबसे ज्यादा मुश्किल तब आती है जब कोई बीमार होता है। ग्रामीणों को कंधे पर उठाकर सड़क तक लाना पड़ता है, क्योंकि एम्बुलेंस गाँव तक नहीं पहुंच पाती। प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और ग्राम प्रधान की निष्क्रियता पर गांव के लोग नाराज़ हैं।
वे कहते हैं —
“हमारे जनप्रतिनिधि सिर्फ वोट लेने आते हैं, विकास की बात करते हैं, लेकिन आज तक यहाँ झांकने तक नहीं आए।”
डीएम मित्तल से उम्मीदें, लेकिन कौन बुलाए?
ग्रामीणों ने जनपद की जिलाधिकारी श्रीमती मित्तल से अपील की है कि वह इस गाँव का स्थलीय निरीक्षण करें, ताकि सच्चाई सामने आ सके। लेकिन सवाल यह उठता है —
“कौन उन्हें आमंत्रित करेगा? कौन बताएगा कि यह गाँव भी उसी भारत का हिस्सा है, जो आज ‘विकसित भारत’ की बात कर रहा है?“
गुलामी जैसी स्थिति में जीवन
यह गाँव आज भी ऐसा लगता है जैसे किसी कैदखाने में रहना, जहां न सड़क है, न चिकित्सा, न कोई सरकारी योजना का समुचित लाभ। ग्रामीणों का कहना है –
“गुलामी से भी बदतर हालात हैं, क्या यही है लोकतंत्र का असली चेहरा?“
यह कोई राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक सच्ची तस्वीर है — देवरिया जिले के एक गाँव की, जो आज भी ‘विकास’ शब्द को सिर्फ किताबों में पढ़ता है।
📍संपर्क सूत्र:
रिपोर्टर: के एन साहनी
स्थान: देवरिया