सरकारी स्कूल उपेक्षित, प्राइवेट स्कूल बेलगाम: गरीब अभिभावकों की जेब पर सीधा हमला
रिपोर्ट: के. एन. सहानी, कुशीनगर
कुशीनगर।
प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों एक गहरे संकट से गुजर रही है। एक तरफ़ सरकार सरकारी स्कूलों को सुविधाओं के अभाव में खुद ही कमजोर बनाकर धीरे-धीरे बंद करने की दिशा में बढ़ रही है, तो दूसरी ओर निजी स्कूलों को खुलेआम आर्थिक शोषण की छूट दे दी गई है। इसका खामियाजा सीधे तौर पर मध्यम और निम्नवर्गीय परिवारों को भुगतना पड़ रहा है।

शिक्षा मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार
सरकारी स्कूलों में शिक्षक निष्क्रिय, माहौल शिक्षाविहीन

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कुशीमगर
गांवों में रहने वाले जागरूक अभिभावक बताते हैं कि सरकारी विद्यालयों में न शिक्षक समय से आते हैं, न पढ़ाई का कोई नियमित माहौल है। मध्यान्ह भोजन योजना (खिचड़ी) में भी लापरवाही अब आम बात हो चुकी है। बच्चों को शिक्षा देने के बजाय सिर्फ उपस्थिति की खानापूरी होती है।
निजी स्कूल बना ‘कमाई का केंद्र’, गरीबों की पहुँच से बाहर
लाचार अभिभावकों के पास मजबूरी में निजी स्कूलों की शरण में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। लेकिन वहाँ जो होता है वह शोषण की हदें पार कर चुका है। नर्सरी से लेकर पहली कक्षा तक के छोटे बच्चों का नामांकन कराने में ही ₹12,000 से ₹18,000 तक की मोटी रकम वसूली जा रही है। यह केवल ट्यूशन फीस नहीं है, बल्कि एक जाल की शुरुआत है।
एमआरपी से दोगुने दाम पर किताबें-कॉपियाँ, स्कूलों का ‘ब्रांडेड लूट’ फार्मूला
कुशीनगर जिले में कई निजी विद्यालय अब अपने प्रबंधकों के जरिए छपवाए गए विशेष ब्रांड की किताबें और कॉपियाँ छात्रों पर थोप रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि ₹40 की कॉपी ₹80 में, ₹100 की किताब ₹200 में बेची जा रही है। न सिर्फ किताबें बल्कि बैग, जूते, ड्रेस, टाई और बेल्ट तक मनमाने दामों पर बेचे जा रहे हैं – और वह भी स्कूल द्वारा अधिकृत दुकानों से खरीदना अनिवार्य कर दिया गया है।
50% से अधिक का मार्जिन स्कूल प्रबंधक और माफिया मिलकर सीधे अभिभावकों से वसूल रहे हैं।
छुट्टियों में भी फीस वसूली, कोई सुनवाई नहीं
अप्रैल और मई की छुट्टियों में भी फीस वसूली जाती है, जबकि इन महीनों में स्कूल पूरी तरह बंद रहते हैं। गरीब और मध्यम वर्गीय अभिभावक इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि बच्चों के भविष्य का डर उन्हें चुप कर देता है।
प्रशासन मौन, बेसिक शिक्षा अधिकारी की खुली छूट?
कुशीनगर जिले में हालात और भी चिंताजनक हैं। ज़िलाधिकारी महोदय की निष्क्रियता और बेसिक शिक्षा अधिकारी की चुप्पी ने प्राइवेट स्कूल संचालकों को खुली छूट दे रखी है। शिक्षा विभाग द्वारा न कोई निरीक्षण किया जाता है, न ही किसी प्रकार की दर निर्धारण प्रक्रिया का पालन। इससे प्रतीत होता है कि या तो अधिकारियों की मिलीभगत है या वे अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ चुके हैं।
जनता की मांग: शिक्षा हो अधिकार, न व्यापार
जनता अब सशक्त आवाज़ में मांग कर रही है कि:
- निजी स्कूलों की फीस और सामग्री की दरों पर सख्त नियंत्रण हो
- एमआरपी से अधिक मूल्य वसूली पर सख्त कार्रवाई की जाए
- सरकारी स्कूलों को संसाधनयुक्त, उत्तरदायी और आकर्षक बनाया जाए
- शिक्षा व्यवस्था को मुनाफाखोरी की मानसिकता से मुक्त किया जाए
यदि यही हाल रहा, तो शिक्षा गरीबों के लिए सपना और अमीरों के लिए सौदा बनकर रह जाएगी।
रिपोर्ट: के. एन. सहानी, कुशीनगर