ईमानदारी, संघर्ष और संवेदनशीलता की मिसाल हैं एसडीएम ऋषभ पूंडीर
प्रशासनिक जिम्मेदारियों में मानवता का समावेश ही इनकी कार्यशैली की पहचान
पडरौना, कुशीनगर।
जब किसी प्रशासनिक अधिकारी की बात होती है, तो अक्सर एक कठोर और नियमों में बंधी छवि सामने आती है। लेकिन उपजिलाधिकारी ऋषभ पूंडीर उन चंद अधिकारियों में गिने जाते हैं, जिनकी कार्यशैली में नियमों के साथ-साथ संवेदनशीलता, ईमानदारी और जनसेवा का गहरा समर्पण भी झलकता है।
हाल ही में पडरौना तहसील के 37वें एसडीएम के रूप में कार्यभार ग्रहण करने वाले ऋषभ पूंडीर की छवि एक सुलझे हुए, जनभावनाओं के प्रति सजग और संघर्षशील अधिकारी के रूप में बनी हुई है। इससे पहले तस्मकुहीराज तहसील में भी उन्होंने गरीब, शोषित और हाशिये पर खड़े लोगों की समस्याओं को प्राथमिकता दी, और बेझिझक व्यवस्था से दो-दो हाथ किए।
संघर्षों से सीखा, लोगों के बीच रहकर कार्य किया
ऋषभ पूंडीर ने हमेशा मानवीय पहलुओं को केंद्र में रखकर प्रशासनिक निर्णय लिए। चाहे वह राजस्व विवाद हों, या आवास, पेंशन, राशन जैसी समस्याएं—हर फरियादी से मिलना और उसकी बात को गंभीरता से सुनना उनकी आदत में शामिल है। वे कई बार बिना लाव-लश्कर के गाँवों में जाकर निरीक्षण करते हैं, ताकि उन्हें वास्तविकता का सही अंदाज़ा हो सके।
उनके सहयोगियों का कहना है कि ऋषभ पूंडीर न केवल ऑफिस में बैठे फैसले करते हैं, बल्कि मैदान में उतरकर समाधान खोजने में विश्वास करते हैं। यही गुण उन्हें एक आम अफसर से अलग बनाते हैं।
ईमानदारी की कसौटी पर खरा उतरने वाला चेहरा
प्रशासनिक पदों पर रहते हुए जहां अक्सर दबाव और सिफारिशों का बोलबाला रहता है, वहीं पूंडीर हमेशा नियमों की सीमाओं में रहकर कार्य करने के लिए जाने जाते हैं। नियमों से कोई समझौता नहीं, लेकिन इंसानियत को भी नजरअंदाज नहीं करते। यही कारण है कि आमजन के बीच उनकी छवि एक ईमानदार और कर्मठ अफसर के रूप में बनी है।
पडरौना की जनता को उम्मीदें
अब जब उन्होंने पडरौना तहसील का कार्यभार संभाला है, तो क्षेत्र की जनता को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में पुराने लंबित मामले गति पकड़ेंगे, और न्याय सुलभ होगा। खासकर गरीब, बुजुर्ग और महिलाओं की समस्याओं के प्रति उनके रुख से लोगों में विश्वास पैदा हुआ है।
ऋषभ पूंडीर उन दुर्लभ अधिकारियों में शामिल हैं जो प्रशासन को मानवता से जोड़ते हैं। उनके लिए अफसरशाही एक साधन है—सेवा का, न कि रुतबे का। ऐसे संवेदनशील और जवाबदेह अधिकारियों की मौजूदगी ही लोकतंत्र की असली ताक़त है।
