आपातकाल और लॉकडाउन पर वैज्ञानिक नजरिया: जब संविधान और मानवता को आघात पहुंचा

डॉक्टर सम्पूर्णनानंद गाँधी

आपातकाल और लॉकडाउन पर वैज्ञानिक नजरिया: जब संविधान और मानवता को आघात पहुंचा

शांतिवन शोध पुस्तकालय, 30 जून 2025।
“भारत गांधी, पटेल, नेहरू, अंबेडकर, सुभाष, भगत सिंह और कलाम की धरती है। आपातकाल लगाने वालों ने संविधान की हत्या की थी।” नरेंद्र मोदी
आपात संवैधानिक प्रावधान है
परंतु इसका इस्तेमाल गलत उद्देश्य से किया गया था

यह वाक्य ऐतिहासिक चेतावनी है, जिसे समय-समय पर याद करना जरूरी है। वर्ष 1975 में लगाया गया आपातकाल संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत घोषित किया गया था, परंतु इतिहास बताता है कि इसका उपयोग गलत इरादों और सत्ता बचाने के लिए किया गया।

आपातकाल में जब विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया, तब इसका भयावह स्वरूप समाज ने महसूस किया। लोकतांत्रिक संस्थाओं को दबाया गया, प्रेस की स्वतंत्रता खत्म हुई और न्यायपालिका पर दबाव बनाया गया।

वहीं 2016 में डिमॉनेटाइजेशन के नाम पर रातोंरात करंसी का खात्मा कर दिया गया, जिससे गरीब, किसान, मजदूर, छोटे दुकानदार भुखमरी और बेरोजगारी के शिकार हुए। नोटबंदी के निर्णय का कोई ठोस वैज्ञानिक आर्थिक अध्ययन नहीं किया गया, जिससे भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था चरमरा गई।

2020 में लागू लॉकडाउन, जिसे कोविड-19 संक्रमण नियंत्रण के नाम पर बिना वैज्ञानिक मूल्यांकन और समाजशास्त्रीय अध्ययन के लगाया गया, वह भी भारतीय संविधान और मानवता पर चोट साबित हुआ। आटा, चावल, दाल, तेल, चीनी, दूध, दवा जैसी जरूरी चीजों पर जीएसटी और लॉकडाउन की वजह से सप्लाई चेन टूट गई। मजदूर पैदल सड़कों पर मारे गए, लाखों लोग बेरोजगार हुए और मानसिक स्वास्थ्य के संकट पैदा हुए।

विज्ञान का मूल उद्देश्य जीवन की रक्षा और मानवता का कल्याण है। लेकिन जब निर्णय विज्ञान और संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध होते हैं, तो मानवता को पीड़ा और संविधान को खतरा होता है। जिस देश में संविधान की हत्या की घटनाएं होती हैं, वहां विकास ठहर जाता है, विज्ञान दम तोड़ता है, और लोकतंत्र खोखला हो जाता है।

आज जब भारत डिजिटल प्रगति और चंद्रयान की सफलता पर गर्व कर रहा है, तब संविधान की रक्षा, वैज्ञानिक सोच और मानवता की रक्षा का संकल्प लेना जरूरी है। आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण भारत देना ही सच्ची वैज्ञानिक राष्ट्रभक्ति होगी।

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