सत्ता में पहुंचते ही कार्यकर्ताओं को भूलने की राजनीति

नेता और कार्यकर्ता का कर्म: जनता के प्रति फर्ज या स्वार्थ की राजनीति?

नेताओं की कामयाबी में कार्यकर्ताओं का योगदान

किसी भी नेता की राजनीतिक सफलता का आधार उनके कार्यकर्ता होते हैं। वे न केवल चुनावी मैदान में दिन-रात मेहनत करते हैं, बल्कि जनसंपर्क, प्रचार-प्रसार और लोगों को रिझाने का पूरा भार उनके कंधों पर होता है। ये वही कार्यकर्ता होते हैं, जो धूप, बारिश और ठंड की परवाह किए बिना सड़कों पर झंडे और बैनर लहराते हैं, सभाओं में भीड़ जुटाते हैं और जनता को पार्टी के पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं।

लेकिन जब नेता सत्ता में पहुंच जाता है, तब अधिकांश कार्यकर्ताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। वे नेता, जिनकी तस्वीरें कभी पोस्टरों और होर्डिंग्स में चमकती थीं, वे आज उन कार्यकर्ताओं को पहचानने से भी इनकार कर देते हैं।

सत्ता में पहुंचते ही कार्यकर्ताओं को भूलने की राजनीति

कुशीनगर में ऐसे ही चार कार्यकर्ताओं की पीड़ा सामने आई है, जिन्होंने एक साधारण व्यक्ति को अपने अथक परिश्रम से दो बार सांसद बनाया। लेकिन अब वही नेता उन पुराने साथियों को भूलकर ठेकेदारों और नए चेहरों के साथ व्यस्त हैं। जिन लोगों ने अपनी जवानी झोंक दी, उनके हालचाल पूछने तक का समय अब उनके पास नहीं है।

एक कार्यकर्ता की व्यथा:

> “हमने 9 साल तक लगातार उस नेता के लिए काम किया। अगर मजदूरी भी करते तो अब तक करीब 13 लाख रुपये कमा लेते। लेकिन हमने अपने भविष्य की चिंता छोड़कर उसके लिए संघर्ष किया। न कोई सम्मान मिला, न कोई विकास हुआ।”

नेता का फर्ज और कार्यकर्ता का उपेक्षित बलिदान

राजनीति में नेताओं का कर्तव्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि जनता और कार्यकर्ताओं की भलाई के लिए काम करना भी उनका फर्ज है। लेकिन आज के दौर में राजनीति का स्वरूप बदल गया है। अब नेतृत्व में बैठा व्यक्ति अपने संघर्ष के दिनों को भूलकर सत्ता के नशे में चूर हो जाता है। उसे अब कार्यकर्ता नहीं, बल्कि ठेकेदार, दलाल और रसूखदार लोग ही ज्यादा प्रिय लगते हैं, क्योंकि वही उसके आर्थिक हितों को साधते हैं।

घमंड का टूटना तय है

नेता के लिए कार्यकर्ता की उपेक्षा ही उसकी राजनीतिक विनाश का कारण बनती है। जब जनता और कार्यकर्ता का धैर्य टूटता है, तब सत्ता के सिंहासन को डगमगाने में देर नहीं लगती। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े नेताओं का घमंड जनता ने चकनाचूर कर दिया।

नेता को जनता के प्रति जवाबदेह होना होगा

लोकतंत्र में सत्ता सेवा का माध्यम है, न कि ऐशो-आराम और स्वार्थपूर्ति का साधन। नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता और कार्यकर्ताओं की निष्ठा ही उनकी असली ताकत है। यदि वे सत्ता के लोभ में उनके योगदान को भूल जाएंगे, तो आने वाले चुनावों में जनता ही उन्हें सबक सिखाएगी।

समाप्ति:

कुशीनगर के इन कार्यकर्ताओं का दर्द उन हजारों मेहनतकश कार्यकर्ताओं की आवाज है, जो नेताओं के लिए अपना खून-पसीना बहाते हैं, लेकिन बाद में उपेक्षित हो जाते हैं। अब समय आ गया है कि जनता और कार्यकर्ता अपने हक के लिए आवाज उठाएं और सत्ता के मद में चूर नेताओं को उनका कर्तव्य याद दिलाएं।

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