पूर्वांचल गांधी डॉ. सम्पूर्णानंद मल्ल का एलान — ‘सत्य के लिए करूंगा सत्याग्रह, राष्ट्रपति तक पुतले जलाऊंगा!’

गोरखपुर।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में न्याय की मांग को लेकर प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरातत्वविद् डॉ. सम्पूर्णानंद मल्ल, जिन्हें लोग पूर्वांचल गांधी के नाम से जानते हैं, ने विश्वविद्यालय प्रशासन और यूजीसी को खुली चुनौती दे दी है। उनका कहना है कि यदि आगामी सात दिनों में उन्हें वरिष्ठता अनुसार प्रोफेसर ऑफ आर्कियोलॉजी के पद पर नियुक्ति नहीं दी गई तो वे महामहिम राज्यपाल, मानव संसाधन विकास मंत्री और राष्ट्रपति के पुतले जलाकर राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह करेंगे।

डॉक्टर सम्पूर्णनानंद मल्ल

डॉ. मल्ल ने साफ कहा — ‘‘मुझे न्याय चाहिए जो सत्य से अभिन्न है।’’ उनका आरोप है कि 30 अगस्त 2003 से उनकी नियुक्ति नियम अनुसार होनी थी परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन की मिलीभगत और यूजीसी रेगुलेशन की अवहेलना के चलते अब तक उन्हें नियुक्त नहीं किया गया। इसके विरोध में वे दो दशकों से लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

‘यूजीसी नेट पास हूं, फिर कैसे अयोग्य?’

डॉ. मल्ल ने बताया कि उनके पास यूजीसी नेट व जेआरएफ की उपाधि है, वे प्रथम श्रेणी में पीजी हैं तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के विख्यात इतिहासकार प्रो. आरसी ठाकरान के निर्देशन में पीएचडी की है। उनकी शोध पुस्तक ‘‘पुरातत्व की अनुसंधान प्रणाली’’ देशभर की यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई जाती है। उनका सवाल है कि यदि यूजीसी नेट अयोग्य है तो फिर इस देश में योग्य कौन है?

कुलपति पर गंभीर आरोप

डॉ. मल्ल ने विश्वविद्यालय के पूर्व कार्यवाहक कुलपति ए.के. मित्तल को ‘फ्रॉडुलेंट एक्टिंग वीसी’ बताते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने उनकी नियुक्ति को नियमविरुद्ध निरस्त किया। यूजीसी ने 28 अगस्त 2008 को कुलपति को जवाब देने का पत्र भी भेजा लेकिन आज 17 वर्ष बाद भी उस पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला।

‘मेरी योग्यता मर्जी-मर्सी की विषय नहीं’

डॉ. मल्ल ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय या कुलपति की मर्जी से किसी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा की वैधता समाप्त नहीं की जा सकती। यह अधिकार न महामहिम राष्ट्रपति को है, न राज्यपाल को — फिर कुलपति ने किस अधिकार से उन्हें अयोग्य ठहराया?

‘रिसर्च मेथाडोलॉजी रहित प्लेगिरिज्म का गढ़ बना डिपार्टमेंट’

डॉ. मल्ल ने कहा कि एएचएसी डिपार्टमेंट में उनका नियुक्त होना आवश्यक है क्योंकि इस विभाग में रिसर्च मेथाडोलॉजी और पुरातत्व पद्धति की शिक्षा देने वाला कोई योग्य व्यक्ति नहीं बचा है। उन्होंने विभाग में विगत चार दशकों में कराई गई सभी पीएचडी की स्वतंत्र जांच की मांग की और दावा किया कि यह जांच होते ही कई फर्जी डिग्रियां और भ्रष्टाचार उजागर हो जाएंगे।

‘सत्याग्रह ही अंतिम रास्ता’

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में चेताया कि यदि विश्वविद्यालय ने सात दिन के भीतर नियुक्ति नहीं की तो वे सत्याग्रह करेंगे और राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल तक के पुतले जलाएंगे। उन्होंने प्रशासन को आगाह किया कि इस दौरान उन्हें हाउस अरेस्ट करने की कोई असंवैधानिक कोशिश न की जाए, क्योंकि सत्याग्रह उनका मौलिक अधिकार है।

प्रशासन पर सवाल

डॉ. मल्ल ने सवाल उठाया कि यूजीसी रेगुलेशन की हत्या किसके इशारे पर हो रही है? क्या सरकार ऐसे अपराधी तंत्र को संरक्षण देना चाहती है? उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके स्थाई शिक्षक के तौर पर किए गए शिक्षण कार्य, परीक्षा मूल्यांकन और प्रवेश सम्बन्धी काम का वेतन भी अगस्त 2003 से प्रोन्नति अनुसार तुरंत दे।

कौन हैं डॉ. सम्पूर्णानंद मल्ल?

डॉ. मल्ल को ‘पूर्वांचल गांधी’ के नाम से जाना जाता है। वे ऐतिहासिक विषयों में गहन शोध के लिए चर्चित हैं। उनकी पुस्तक ‘‘पुरातत्व की अनुसंधान प्रणाली’’ अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसे मंचों पर उपलब्ध है और अंतरराष्ट्रीय बुक फेयर में भी सराही जा चुकी है। उनकी पीएचडी के राष्ट्रीय स्तर के रिसोर्स पर्सन और पुरातत्व के दिग्गज भी खुले समर्थन में हैं।

उन्होंने क्या मांगा है?

✅ AHAC डिपार्टमेंट में 30 अगस्त 2003 से वरिष्ठतानुसार प्रोफेसर ऑफ आर्कियोलॉजी के पद पर नियुक्ति
✅ अगस्त 2003 से स्थाई शिक्षक वेतन प्रोन्नति अनुसार भुगतान
✅ विश्वविद्यालय प्रशासन पर यूजीसी रेगुलेशन और नेट की हत्या के मुकदमे दर्ज कर कार्रवाई
✅ विभाग में पुरानी पीएचडी की जांच स्वतंत्र इंडोलॉजिस्ट से कराना

डॉ. मल्ल की चेतावनी

“यह क्रिमिनलाइज्ड व्यवस्था नहीं चलने दूंगा। सत्य और अहिंसा से इसे तोड़ूंगा, चाहे किसी को भी कितनी परेशानी हो।”

📍 प्रतिलिपि: महामहिम राज्यपाल, HRD मंत्री, कुलपति, जिलाधिकारी, विश्वविद्यालय प्रशासन…

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