कुशीनगर: 31 साल बाद भी अधूरे सपनों का जिला
कुशीनगर।
13 मई 1994 को मायावती सरकार ने देवरिया जनपद से अलग कर नया जिला कुशीनगर बनाया। इस जिले का मुख्यालय रबिन्द्र नगर (धूस) नामित किया गया। उस वक्त लोगों को उम्मीद थी कि यह जिला पर्यटन, व्यापार और विकास का नया केंद्र बनेगा। लेकिन 25 अगस्त 2025 तक पूरे 31 साल 3 महीने 12 दिन बीत जाने के बाद भी कुशीनगर कई बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है।
प्रशासनिक ढांचा
लगभग 41 लाख की आबादी वाले जिले में आज 6 तहसीलें, 14 विकास खंड और 22 थाने (महिला थाना सहित) मौजूद हैं। जिले की बागडोर जिलाधिकारी महेन्द्र सिंह तंवर, मुख्य विकास अधिकारी गुंजन द्विवेदी और पुलिस अधीक्षक संतोष मिश्रा के हाथों में है। यह तीनों प्रमुख अधिकारी विकास और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
तराई क्षेत्र की असली समस्या: संक्रमण और बीमारियां
कुशीनगर पूर्वांचल के तराई क्षेत्र में बसा जिला है। बरसात और बाढ़ के दिनों में यहां मलेरिया, डेंगू और इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां बड़ी चुनौती बन जाती हैं। पहले प्रशासन की ओर से फॉगिंग और मच्छररोधी दवाओं का छिड़काव किया जाता था, लेकिन अब यह व्यवस्था लगभग बंद हो चुकी है। जनता का कहना है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग चाहें तो इन संक्रामक रोगों पर नियंत्रण पाना कठिन नहीं है, लेकिन लापरवाही और उदासीनता से हालात बिगड़ रहे हैं।
व्यापार और बुनियादी सुविधाओं की कमी
जिला मुख्यालय रबिन्द्र नगर में अब तक कोई बड़ा व्यापारिक मार्केट विकसित नहीं हुआ है।
सार्वजनिक शौचालयों का घोर अभाव और पेयजल संकट यहां की आम जनता की सबसे बड़ी परेशानी है।
जनता और सरकार आमने-सामने
जनता का कहना है कि अगर सरकार वाकई गंभीर होती तो स्वास्थ्य सुरक्षा, शौचालय, पेयजल और व्यापारिक ढांचे की व्यवस्था पहले की जाती। लेकिन विभागों की सुस्ती और प्रशासनिक मशीनरी की कमजोरी ने जिले को अधर में छोड़ दिया। कई विभागीय अधिकारी भी मानते हैं कि योजनाएं बनती तो हैं, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन नहीं हो पाता।
जनता की अधूरी उम्मीदें
कुशीनगर को जिला बने 31 साल से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन यहां के लोग आज भी उन मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं जो एक जिला मुख्यालय की पहचान होती हैं। पर्यटन की अपार संभावनाएं होने के बावजूद कुशीनगर की जनता पहले बुनियादी सुविधाओं और स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।
रिपोर्ट – के. एन. साहनी