50 से अधिक नामांकन वाले स्कूलों को नहीं किया जाएगा बंद: मुख्यमंत्री योगी


50 से अधिक नामांकन वाले स्कूलों को नहीं किया जाएगा बंद: मुख्यमंत्री योगी

सीएम योगी आदित्यनाथ

रिपोर्ट :के एन सहानी लखनऊ यूपी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट किया है कि जिन प्राथमिक विद्यालयों में 50 से अधिक छात्र नामांकित हैं, उन्हें बंद नहीं किया जाएगा। ऐसे विद्यालय स्वतंत्र रूप से संचालित होते रहेंगे ताकि प्रशासनिक व्यवस्था, जवाबदेही और शैक्षणिक निगरानी को और बेहतर बनाया जा सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह फैसला ऐसे विद्यालयों के लिए अच्छी खबर है, जहां पर्याप्त नामांकन के बावजूद बंद होने की आशंका बनी हुई थी।


सरकारी स्कूलों की हकीकत: शिक्षा नहीं, केवल सुविधा

हालांकि सरकार की इस घोषणा को राहत की खबर माना जा रहा है, मगर जमीनी सच्चाई इससे कुछ अलग है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी प्राइमरी स्कूलों की हालत चिंताजनक बनी हुई है।
निःशुल्क शिक्षा, मिड डे मील, ड्रेस और किताबों के बावजूद आज गरीब से गरीब परिवार भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना नहीं चाहता।

“सरकार भले ही योग्य शिक्षक नियुक्त कर दे, पर अगर कक्षा में पढ़ाई नहीं हो रही, तो निःशुल्क सुविधाएं शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकतीं।”

सरकारी शिक्षकों को मोटा वेतन दिया जा रहा है, मगर कई स्थानों पर उन पर कार्य-प्रणाली, जवाबदेही और उपस्थिति को लेकर सवाल उठते रहे हैं।


प्राइवेट स्कूलों का बढ़ता बोलबाला और मनमानी शुल्क वसूली

सरकारी स्कूलों की गिरती साख के बीच प्राइवेट स्कूलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।
इन स्कूलों में भले ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का दावा किया जाता हो, लेकिन मनमानी फीस, ड्रेस, बुक सेट, स्टेशनरी, टाई-बेल्ट जैसे “पैकेजों” में कमीशनबाजी की शिकायतें आम हैं।

“बच्चों के अभिभावक निजी स्कूलों में भारी भरकम खर्च के बावजूद शिक्षा के नाम पर ठगे जा रहे हैं।”

ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि इन निजी विद्यालयों को इतनी छूट और मान्यता आखिर क्यों दी जा रही है, जबकि इनकी नीतियों पर कोई पारदर्शी नियंत्रण नहीं है?


छात्र संख्या कम वाले सरकारी स्कूलों का हो रहा विलय

राज्य सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को अधिक संगठित और संसाधन-केंद्रित बनाने के उद्देश्य से 50 से कम नामांकन वाले 10,827 स्कूलों का विलय कर दिया है।
इनमें से कई स्कूलों में 20 से भी कम छात्र थे, और कुछ ऐसे भी थे जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं था।

इन बंद विद्यालयों के भवनों को आंगनबाड़ी केंद्रों और बालवाटिकाओं के लिए उपयोग में लाने की प्रक्रिया चल रही है।


मुख्यमंत्री के निर्देश: शिक्षा गुणवत्ता और संरचना पर जोर

मुख्यमंत्री ने संबंधित विभागों को निर्देश दिए हैं कि:

  • शिक्षक-छात्र अनुपात को संतुलित रखने हेतु रिक्त पदों की शीघ्र भर्ती की जाए।
  • जिन विद्यालयों में भवन, शौचालय, बिजली, फर्नीचर आदि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, उन्हें तत्काल उपलब्ध कराया जाए।

साथ ही, स्कूल चलो अभियान को और प्रभावी बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि 6 से 14 वर्ष की उम्र का कोई भी बच्चा स्कूल से वंचित न रहे


₹1200 की सहायता राशि सीधे खातों में

बच्चों को यूनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी जैसी जरूरतों के लिए ₹1200 की राशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के जरिए उनके खातों में भेजी जा रही है।
सरकार का मानना है कि इससे बच्चों की पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं आएगा।


भेटघाट (गोरखपुर) व अलीगढ़ के उदाहरण

कुछ जिलों में भ्रम की स्थिति भी सामने आई है।
गोरखपुर के भेटघाट विकासखंड के शकुनी बेरवा विद्यालय में 59 नामांकन के बावजूद पेयरिंग कर दी गई है।
अलीगढ़ में भी 10 ऐसे विद्यालय चिन्हित किए गए हैं जिनमें 50 से अधिक छात्र हैं, फिर भी उन्हें विलय सूची में शामिल कर लिया गया।

मुख्यमंत्री ने ऐसे मामलों में संज्ञान लेते हुए कहा है कि जहां 50 से अधिक छात्र नामांकित हों, ऐसे विद्यालयों को बंद नहीं किया जाना चाहिए


जहां एक ओर सरकार संसाधनों के कुशल उपयोग और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई के अभाव और प्राइवेट स्कूलों की मनमानी जैसी चुनौतियां भी सामने हैं।

अब समय आ गया है कि न केवल सरकारी स्कूलों में जवाबदेही और गुणवत्ता लाई जाए, बल्कि प्राइवेट स्कूलों के ऊपर भी नियंत्रण व निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए — ताकि प्रदेश में हर बच्चा समान अवसर और सार्थक शिक्षा पा सके।


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