रिपोर्ट: के. एन. सहानी | सच्ची रिपोर्ट, उत्तर प्रदेश
कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के किसान इस समय दोहरी मार झेल रहे हैं—एक तरफ मौसम की बेरुख़ी, दूसरी तरफ सरकारी खामोशी। जहां पश्चिम यूपी के कई ज़िले बाढ़ से जूझ रहे हैं, वहीं पूर्वांचल के जनपद कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती और मऊ सूखे की चपेट में हैं। लगातार बारिश न होने से खेतों की मिट्टी फट रही है और धान की फसलें बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी हैं।
धान की नर्सरी क़े पानी पानी के लाले, रोपाई के बाद सूखने लगी फसले
धान की नर्सरी तो किसानों ने समय से तैयार कर ली, लेकिन बारिश न होने के कारण रोपाई संभव नहीं हो सकी। जिन किसानों ने निजी संसाधनों से सिंचाई की कोशिश की, उन्हें डीज़ल के दाम और बिजली की कटौती ने झकझोर कर रख दिया।
चौपरिया सिधुआ के किसान राणाप्रताप चौबे एवं सुबास गुप्ता बताते हैं:
“हर साल जुलाई के पहले हफ्ते तक रोपाई पूरी हो जाती थी, लेकिन इस बार बादल भी नहीं दिखे। डीज़ल खरीदना बहुत महंगा हो गया है और बिजली कभी आती है, कभी नहीं। अगर अब भी पानी न बरसा तो घर के खाने को भी अनाज नहीं बचेगा।”
जलस्तर गिरा, बोरिंग से सिंचाई भी मुश्किल
लगातार सूखे के कारण भूजल स्तर गिरता जा रहा है, जिससे बोरिंग और ट्यूबवेल से सिंचाई करना भी मुमकिन नहीं रह गया है। छोटे कास्तकारों के सामने संकट और भी गहरा हो गया है। खेतों में दरारें पड़ चुकी हैं और हरी फसलें पीली पड़ने लगी हैं।
किसानों की सरकार से मांग
किसानों और उनके संगठनों ने सरकार से निम्न मांगें की हैं:
- आपातकालीन डीज़ल अनुदान प्रदान किया जाए
- मुफ़्त बिजली की व्यवस्था की जाए
- ट्यूबवेल और पम्पिंग सेट के संचालन हेतु विशेष अभियान चलाया जाए
- नहरों में पानी छोड़ा जाए
- पूर्वांचल को सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जाए
किसान नेताओं का कहना है,
“अगर अब भी सरकार ने कदम नहीं उठाया तो इस बार सिर्फ फसल नहीं, बल्कि किसान की उम्मीदें भी सूख जाएंगी।”
विशेषज्ञों की चेतावनी: सात दिन अहम
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धान की रोपाई का समय अब लगभग खत्म हो रहा है। यदि आगामी 7–10 दिनों में बारिश नहीं होती, तो पूरे पूर्वांचल में धान उत्पादन 50% तक घट सकता है, जिससे आगामी महीनों में खाद्यान्न संकट गहरा सकता है।
नीति नहीं, संवेदना चाहिए
किसानों का कहना है कि अब भाषण नहीं, मौके पर राहत चाहिए। सरकार को सिर्फ घोषणा नहीं, जमीनी हकीकत देखनी चाहिए।
“मंच पर नहीं, खेत में उतरें नेता, तभी बचेगा पूर्वांचल का अन्नदाता।”
यह रिपोर्ट पूर्वांचल के गांवों की वह सच्चाई है, जो अक्सर कैमरों से दूर रह जाती है—जहां खेत सूखते हैं, उम्मीदें झुलसती हैं और सरकारें अक्सर चुप रहती हैं।




