नेट पास शिक्षक की चीख: क्या योग्यता अब अपराध है?

नेट पास शिक्षक की चीख: क्या योग्यता अब अपराध है?


✍️ के. एन. साहनी

एक शिक्षक जो नेट पास है। पीएच.डी है। वर्षों से शिक्षा की सेवा में है। लेकिन वह विश्वविद्यालय तंत्र के आगे चीख रहा है—क्या योग्यता अब अपराध है?

यह प्रश्न सिर्फ डॉ. संपूर्णानंद मल्ल का नहीं है, यह उस हर शिक्षक का प्रश्न है जो अपनी मेहनत से, योग्यता से, ईमानदारी से शिक्षा प्रणाली में स्थान बनाना चाहता है। पर जब जवाब में उसे अपमान, उपेक्षा और “हाउस अरेस्ट” मिलता है, तब लोकतंत्र और न्याय की बुनियाद हिलती है।

डॉ. मल्ल, जिन्हें लोग “पूर्वांचल गांधी” कहते हैं, उनका जीवन सत्याग्रह और आत्मबलिदान का प्रतीक बन गया है। उन्होंने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (NET) और UGC नियमों के तहत प्रवक्ता पद के लिए आवश्यक सभी योग्यताएं प्राप्त की हैं। उनका प्रमाणपत्र स्थायी वैधता वाला है — इसे न शासनादेश की मर्जी मिटा सकती है, न कुलपति की ‘विशेष व्याख्या’।

फिर भी, उन्हें 2003 से मानदेय पर कार्य कराने के बाद विश्वविद्यालय ने उन्हें उनके अधिकार से वंचित रखा है। न वरिष्ठता दी गई, न स्थायी नियुक्ति। जब उन्होंने अपनी बात कहनी चाही, तो जवाब नहीं मिला — गिरफ्तारी मिली। यह लोकतंत्र है या शिक्षाविरोधी तंत्र?

उनकी पंक्ति “इस पत्र का जवाब मुझे कब मिलेगा? मर जाऊंगा तब?” सिर्फ पीड़ा नहीं है — यह उस व्यवस्था पर तमाचा है जो योग्यता से ज़्यादा चापलूसी को महत्व देती है।

जब एक शिक्षक को विवश होकर कहना पड़े कि वह महामहिम राज्यपाल के आवास पर सत्याग्रह करेगा, तो यह सवाल उठता है — क्या अब एक सच्चा शिक्षक केवल इसलिए सज़ा का पात्र है क्योंकि उसने सच्चाई और न्याय की बात की?

यह एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है। यह शिक्षा व्यवस्था में छिपे उस भ्रष्टाचार, मनमानी और प्लेगिरिज्म के विरुद्ध बिगुल है जो योग्य उम्मीदवारों की जगह ‘मनपसंद’ लोगों को बैठाता है।

सवाल विश्वविद्यालयों से है —

क्या वे यूजीसी रेगुलेशन से ऊपर हैं?

क्या कुलपति अपनी “व्याख्या” से योग्यता तय करेंगे?

और क्या एक शिक्षक को न्याय मांगने की कीमत में हाउस अरेस्ट मिलना चाहिए?

डॉ. संपूर्णानंद मल्ल का संघर्ष सिर्फ एक नियुक्ति का मुद्दा नहीं है — यह उस शिक्षक की आवाज़ है जिसे हर लोकतांत्रिक संस्था को सुनना चाहिए।

अब समय आ गया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और शासन दोनों जवाब दें —
क्योंकि अगर इस देश में ‘नेट पास शिक्षक’ की आवाज़ अनसुनी की जाती रही, तो शिक्षा नहीं, व्यवस्था शर्मिंदा होगी।

✉️ लेखक परिचय:
के. एन. साहनी, वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक विमर्श और शिक्षा विषयों के पैने विश्लेषक।
ईमेल: knsreport@gmail.com

Related Post

Leave a Comment