तहसील की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहा पीड़ित

कुशीनगर। तमकुहीराज तहसील के उपजिलाधिकारी श्री ऋषभ पुंडीर अपनी सजग और संवेदनशील कार्यशैली के लिए सराहे जाते हैं। प्रतिदिन अपने कार्यालय में जनसुनवाई के दौरान फरियादियों की समस्याएं सुनना और उनका त्वरित निस्तारण करना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। इसके बावजूद एक पुराने भूमि विवाद से जुड़ा मामला ऐसा है, जो अब उनकी प्रशासनिक दक्षता के सामने एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

मामला तहसीलदार न्यायालय तमकुहीराज में वर्ष 2022 में पारित आदेश से जुड़ा है, जिसमें ग्राम मिश्रौली भुआल पट्टी निवासी मुखलाल मिश्र द्वारा दाखिल मुकदमे में भूमि बंटवारे को लेकर आदेश पारित हुआ था। आदेश के अनुसार, मुखलाल पुत्र बद्रीनारायण एवं विपक्षीगण शत्रुजीत, उमेश उर्फ पुजारी, दिनेश, युगती एवं अंगद के बीच भूमि की पैमाइश कर बंटवारा सुनिश्चित किया जाना था। लेकिन दुर्भाग्यवश यह पैमाईश आज तक नहीं हो सकी है।

मुखलाल मिश्र के पुत्र राहुल मिश्र, उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ यह परिवार आज भी न्याय की राह देख रहा है। उनका स्पष्ट कहना है कि उन्हें उनका हक चाहिए, और यह केवल उनके परिवार की बात नहीं, बल्कि पूरे गांव और तहसील के प्रशासनिक सम्मान से जुड़ा मुद्दा है। उनका आरोप है कि बिना पक्की पैमाइश और मजिस्ट्रेट की मौजूदगी के, इतनी विवादित भूमि का विभाजन संभव नहीं है। इस कार्रवाई के लिए महिला पुलिस, राजस्व टीम और पर्याप्त बल की आवश्यकता है।

एक स्थानीय नागरिक ने इसे “रावण की लंका में विभीषण के उत्पीड़न” जैसा प्रतीकात्मक उदाहरण बताया, जिसमें पीड़ित का संघर्ष प्रशासन की असंवेदनशीलता के सामने खड़ा है। अब यह देखना अहम होगा कि एसडीएम ऋषभ पुंडीर इस ‘यक्ष प्रश्न’ का समाधान कर पाते हैं या नहीं। यह सिर्फ मुखलाल मिश्र के परिवार का नहीं, तमकुहीराज तहसील के प्रशासनिक प्रतिष्ठा का भी सवाल बन गया है।

गौरतलब है कि पूर्व में जब एक महिला भूमि विवाद को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी तक पहुँची थीं, तो मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद तत्कालीन कमिश्नर अनिल ढींगरा को विशेष जनसुनवाई के लिए भेजा गया था। उस समय भी तमकुहीराज तहसील से बड़ी संख्या में भूमि विवाद के मामले सामने आए थे। इसके बावजूद तहसील के कई बाबुओं और पेशकारों की भूमिका आज भी संदेह के घेरे में है।

कहा जा रहा है कि यदि एसडीएम और तहसीलदार चाहें, तो सभी लंबित मामलों का शीघ्र समाधान संभव है। लेकिन जानबूझकर मामलों को पेंडिंग रखकर वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा है।

अब सवाल यही है: क्या मुखलाल मिश्र के परिवार को न्याय मिलेगा? क्या प्रशासनिक इच्छाशक्ति इस आदेश को जमीन पर उतार सकेगी? या फिर यह मामला भी न्याय की सूखती उम्मीदों के बीच खो जाएगा?

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