निषाद समाज: संघर्ष, शौर्य और स्वाभिमान की अमर गाथा

निषाद समाज: संघर्ष, शौर्य और स्वाभिमान की अमर गाथा

निषाद समाज का इतिहास केवल बीते युग की कहानियाँ नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और स्वाभिमान की वह जीवंत धारा है, जिसने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को मजबूती दी है। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो निषाद समाज केवल एक समुदाय नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण की नींव रखने वाला स्तंभ रहा है।

रामायण और महाभारत में निषाद समाज का गौरव

प्रभु श्रीराम के वनवास के दौरान उनके सबसे विश्वसनीय मित्र और सहयोगी कौन थे? निषादराज गुह। जब पूरी अयोध्या ने राम को त्याग दिया, तब निषादराज गुह ने उन्हें न केवल शरण दी, बल्कि गंगा पार कराने का धर्म निभाया। क्या यह त्याग, समर्पण और मित्रता की अद्वितीय मिसाल नहीं?

महाभारत की बात करें तो वीर एकलव्य, जिनकी वीरता और धनुर्विद्या पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध थी, वे भी निषाद समाज के गौरवशाली योद्धा थे। गुरु द्रोणाचार्य ने उनसे अंगूठे की बलि मांगी, लेकिन फिर भी उनके शौर्य को कोई मिटा न सका। यह उदाहरण निषाद समाज की निष्ठा, अनुशासन और बलिदान की सर्वोच्च गाथा है।

क्यों नहीं होता निषाद समाज के संघर्षों का उल्लेख?

आज जब प्रयागराज के महाकुंभ में करोड़ों रुपये खर्च कर नेताओं, अभिनेताओं और साधु-संतों को आमंत्रित किया जाता है, तब गंगा की सफाई के असली नायकों—निषाद समाज के पूर्वजों—का कहीं उल्लेख तक नहीं होता। यह वही समाज है जिसने सदियों तक गंगा की सफाई की, नावों से लोगों को पार कराया, और जल परिवहन को संभव बनाया।

श्याम लाल निषाद, मोस्ट कल्याण संस्थान, उत्तर प्रदेश के निदेशक, इस कटु सत्य को उजागर करते हुए कहते हैं—

“गंगा में डुबकी लगाना स्वर्ग प्राप्ति के समान बताया जाता है, लेकिन उन निषाद पूर्वजों का क्या, जिन्होंने इस गंगा को सदियों तक साफ रखा? क्यों आज भी निषाद समाज को हाशिए पर रखा जाता है?

निषाद समाज की उपेक्षा कब तक?

इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, लेकिन सच्चाई को बदला नहीं जा सकता। निषाद समाज ने अपने पुरुषार्थ और पराक्रम से यह सिद्ध किया है कि वह केवल एक वंचित समाज नहीं, बल्कि इस भूमि का गौरव है।

निषाद समाज केवल नाव चलाने वाला समाज नहीं, बल्कि देश की प्राचीन संस्कृति का वाहक रहा है। वीरता, संघर्ष और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रवृत्ति इसे अद्वितीय बनाती है।

अब समय आ गया है जागरूक होने का!

श्याम लाल निषाद और अन्य समाजसेवियों के नेतृत्व में निषाद समाज अब एकजुट हो रहा है। इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वालों को जवाब देने का वक्त आ गया है। निषाद समाज को उसकी वास्तविक पहचान दिलाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करने की जरूरत है।

“निषाद समाज का अस्तित्व केवल किताबों में सिमटकर नहीं रहेगा, बल्कि इसका स्वर्णिम इतिहास पूरी दुनिया देखेगी।”

निषाद समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने का संकल्प लें!

रिपोर्ट: के.एन. साहनी, सच्ची रिपोर्ट, झांसी, उत्तर प्रदेश

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